हनुमान जी के बारे में विशेष तथ्य (Fact about Hanuman Ji) :
जैसा कि हम जानते है कि हनुमान जी भगवान शिव 11वें रुद्र अवतार है क्योंकि वे अपने वास्तविक रुप में भगवान श्री राम की सेवा नहीं कर सकते थे। इसीलिए हनुमान जी का अवतार हुआ हनुमान जी को याद करने के लिए उनके भक्त मन्त्र , आरती , हनुमान चालीसा(hanuman chalisa) , दोहा ,चौपाई का सहारा लेते है जिनके माध्यम से वह हनुमान जी को (Fact about Hanuman Ji)याद करते है जो कि इस प्रकार है:
Fact about Hanuman Ji :
श्री हनुमान जी मंत्र :
“मनोजवं मारुततुल्यवेगम्
जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं
श्री रामदूतं शरणं प्रपद्ये।।”
श्री हनुमान चालीसा (hanuman chalisa):
हनुमान चालीसा का प्रारम्भिक दोहा :
“श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारि।
बरनऊँ रघुवर विमल जसु, जो दायकु फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानि के, सुमिरौ पवन कुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार।।”
श्री हनुमान चालीसा की चौपाई :
“जय हनुमान ज्ञान गुन सागर, जय कपीस तिंहु लोक उजागर।।
रामदूत अतुलित बल धामा, अंजनि पुत्र पवन सुत नामा।।
महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी।
कंचन वरन विराज सुबेसा, कान्न कुण्डल कुंचित केसा।।
हाथ ब्रज औ ध्वजा विराजे, कान्धे मूंज जनेऊ साजे।
शंकर सुमन केसरी नन्दन, तेज प्रताप महा जग वन्दन।।
विद्यावान गुनी अति चातुर, राम काज करिवे को आतुर।
प्रभु चरित्र सुनिवे को रसिया, राम-लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियंहि दिखावा, विकट रूप धरि लंक जरावा।
भीम रूप धरि असुर संहारे, रामचन्द्र के काज सवारे।।
लाए संजीवन लखन जियाए, श्री रघुबीर हरषि उर लाए।
रघुपति कीन्हि बहुत बठाई, तुम मम प्रिय भरत सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावें, अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावें।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा, नारद सारद सहित अहीसा।।
यम कुबेर दिगपाल कहाँ ते, कवि कोबिद कहि सके कहाँ ते।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा, राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
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तुम्हरो मन्त्र विभीषन माना, लंकेश्वर भए सब जग जाना।
जुग सहस्र जोजन पर भानु, लील्यो ताहि मधुर फल जानु।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख मांहि, जलधि लाँघ गये अचरज नाहिं।
दुर्गम काज जगत के जेते, सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुलारे तुम रखवारे, होत न आज्ञा बिनु पैसारे।
सब सुख लहे तुम्हारी सरना, तुम रक्षक काहूँ को डरना।।
आपन तेज सम्हारो आपे, तीनों लोक हाँक ते काँपे।
भूत पिशाच निकट नहीं आवें, महावीर जब नाम सुनावें।।
नासे रोग हरे सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत वीरा।
संकट ते हनुमान छुड़ावें, मन क्रम वचन ध्यान जो लावें।।
सब पर राम तपस्वी राजा, तिनके काज सकल तुम साजा।
और मनोरथ जो कोई लावे, सोई अमित जीवन फल पावे।।
चारों जुग परताप तुम्हारा, है प्रसिद्ध जगत उजियारा।
साधु संत के तुम रखवारे, असुर निकंदन राम दुलारे।।
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता, अस बर दीन्ह जानकी माता।
राम रसायन तुम्हरे पासा, सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुम्हरे भजन राम को पावें, जनम जनम के दुख विसरावें।
अन्त काल रघुवर पुर जाई, जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई, हनुमत सेई सर्व सुख करई।
संकट कटे मिटे सब पीरा, जपत निरन्तर हनुमत बलवीरा।।
जय जय जय हनुमान गोसाईं, कृपा करो गुरुदेव की नाईं।
जो सत बार पाठ कर कोई, छूटई बन्दि महासुख होई।।
जो यह पाठ पढ़े हनुमान चालीसा, होय सिद्धि साखी गौरीसा।
तुलसीदास सदा हरि चेरा, कीजै नाथ हृदय मँह डेरा।।”
श्री हनुमान चालीसा (hanuman chalisa) का अंतिम दोहा :
“पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।”
श्री हनुमान जी की आरती :
“आरती किजे हनुमान लला की| दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
जाके बल से गिरवर काँपे | रोग दोष जाके निकट ना झाँके ॥
अंजनी पुत्र महा बलदाई| संतन के प्रभु सदा सहाई॥
दे वीरा रघुनाथ पठाए| लंका जाए सिया सुधी लाए॥
लंका सा कोट समुंद्र सी खाई| जात पवनसुत बार न लाई॥
लंका जाई असुर संहारे| सियाराम जी के काज सँवारे॥
लक्ष्मण मूर्छित पडे सकारे| लानि संजिवन प्राण उबारे॥
पैठि पताल तोरि जम कारे| अहिरावन की भुजा उखारे॥
बायें भुजा असुर दल मारे| दाहीने भुजा सब संत जन उबारे॥
सुर नर मुनि जन आरती उतारे| जै जै जै हनुमान उचारे॥
कचंन थाल कपूर लौ छाई| आरती करत अंजना माई॥
जो हनुमान जी की आरती गावे| बसहिं बैकुंठ परम पद पावें॥
लंका विध्वंश किए रघुराई| तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई॥
आरती किजे हनुमान लला की| दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥”
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