about bhagat singh in hindi | शहीदे आजम भगत सिंह की जीवनी

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about bhagat singh in hindi | भगत सिंह की जीवनी :

इन्कलाब जिंदाबाद नारे के प्रणेता शहीदे आजम भगत सिंह (shaheed bhagat singh) देश के युवाओ का प्रेरणा स्त्रोत है जिन्होंने अपने विचारो से देश के युवाओ में स्वतंत्रता संग्राम से दौरान एक नई ऊर्जा का संचार कर दिया था उनके द्वारा लाई गई क्रांति ने अंग्रेजी हुकुमत की जड़े हिला दी थी वे स्वतंत्रता संग्राम के अग्रदूत थे उनके त्याग और बलिदान को शब्दों में बयाँ कर पाना मुश्किल है मात्र 24 वर्ष की उम्र में देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान करने वाले भारत माँ के सच्चे सपूत को देश आज भी कृतज्ञ रूप से नमन करता है तो आइये जानते है शहीदे आजम भगत सिंह (about bhagat singh in hindi) के बारे में …..

about bhagat singh in hindi :

  1. शहीदे आजम भगत सिंह (bhagat singh) का जन्म 28 सितम्बर 1907 को गॉव बंगा जिला लायलपुर ,पंजाब में हुआ था जो कि अब पाकिस्तान में है|
  2. शहीदे आजम भगत सिंह (bhagat singh) की माता का नाम विद्यावती कौर था|
  3. भगत सिंह (bhagat singh) के पिता का नाम किशन सिंह था जो कि पेशे से किसान थे|
  4. भगत सिंह (bhagat singh) का परिवार शुरुआत से ही आजादी का पैरोकार रहा उनके चाचा अजित सिंह और श्वान सिंह गदर पार्टी के सदस्य थे|
  5. जिसका सीधा असर शहीदे आजम भगत सिंह (bhagat singh) पर पड़ा और वे बचपन से ही अंग्रेजो से घृणा करने लगे|
  6. वर्ष 1916 में लाहौर के डी ऐ वी विद्यालय में पढाई के दौरान उनका सम्पर्क लाला लाजपत राय और रास बिहारी बोस से हुआ।
  7. जब 13 अप्रैल 1919 में अमृतसर में जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ तब उनकी उम्र मात्र 12 वर्ष की थी लेकिन इस गोलीकांड ने उन पर एक गहरी और अमिट छाप छोड़ दी|
  8. इसके बाद शहीदे आजम भगत सिंह (bhagat singh) ने वर्ष 1920 में अपनी पढाई छोड़ दी और महात्मा गाँधी के अहिंसा आन्दोलन में शामिल हो गये|
  9. शहीदे आजम भगत सिंह (bhagat singh) अहिंसा आन्दोलन और भारतीय नेशनल कांफ्रेंस के सदस्य थे|
  10. जब 1921 में चौरा चौरी कांड हुआ था तो गाँधी जी ने सत्याग्रहीयों का साथ नही दिया जिसके बाद से गाँधी जी और भगत सिंह (bhagat singh) में मतभेद हो गये|

  11. उसके बाद शहीदे आजम भगत सिंह (bhagat singh) चन्द्रशेखर आजाद के द्वारा बनाये गये गदर दल में शामिल हो गये|
  12. भगत सिंह (bhagat singh) , रामप्रसाद बिस्मिल और अन्य क्रांतिकारीयो ने साथ मिलकर 9 अगस्त, 1925 को सरकारी खजाने को लुटने की घटना को अंजाम दिया जिसे काकोरी कांड के नाम से जाना जाता है|
  13. साइमन कमिशन के विरोध में लाला लाजपत राय द्वारा किये जा रहे आन्दोलन के दौरान अंग्रेजो की लाठी से मौत हो गयी तो भगत सिंह (bhagat singh) ने अंग्रेजो से बदला लेने का प्रण लिया उन्होंने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसम्बर 1928 को लाहौर में सहायक अधीक्षक रहे अंग्रेज अधिकारी जनरल सांडर्स की हत्या कर दी|
  14. 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेजो को नींद से जगाने के लिए और अंग्रेजो की दमनकारी नीतियों के खिलाफ संसद के केन्द्रीय सभागार में बम और पर्चे फेंके जिसमे उनका साथ बटुकेश्वर दत्त ने दिया था| इस दौरान उन्होंने इन्कलाब जिंदाबाद के नारे भी लगाये थे|
  15. विशेष न्यायालय द्वारा 7 अक्टूबर 1930 को भगत सिंह (bhagat singh), सुख देव और राज गुरु को मौत की सजा सुनाई गई।
  16. 23 मार्च 1931 को शाम में करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह (bhagat singh), सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गई और इस प्रकार से आज़ादी की ये परवाने हमसे हमेशा हमेशा के लिए विदा हो गये|
  17. फांसी चढने से पूर्व तीनो क्रांतिकारी “मेरा रँग दे बसन्ती चोला, मेरा रँग दे;मेरा रँग दे बसन्ती चोला। माय रँग दे बसन्ती चोला।।” गीत गा कर देश के युवाओ में एक नई ऊर्जा का संचार कर रहे थे|

  18. भगत सिंह हिंदी के साथ साथ अंग्रेजी, उर्दू, बांग्ला, पंजाबी भाषाएँ भी जानते थे|
  19. शहीदे आजम भगत सिंह (bhagat singh) वामपंथी विचारधारा के समर्थक थे|
  20. शहीदे आजम भगत सिंह (bhagat singh) को किताबे पढने और लिखने का बढ़ा शौक था उनके द्वारा लिखी गई कुछ महत्वपूर्ण किताबे इस प्रकार है – “Why I Am an Atheist”, “The Selected Works of Bhagat Singh”, “Jail Diary and Other Writings”, “Letter to my Father Bhagat Singh”
  21. अपनी फांसी के कुछ पहले 9 मार्च को अपने भाई कुलतार सिंह को एक पत्र लिखा था जिसमे उन्होंने लिखा था-

    उसे यह फ़िक्र है हरदम, नया तर्जे-जफ़ा क्या है?
    हमें यह शौक देखें, सितम की इंतहा क्या है?

    दहर से क्यों खफ़ा रहे, चर्ख का क्यों गिला करें,
    सारा जहाँ अदू सही,आओ मुकाबला करें।

    कोई दम का मेहमान हूँ,ए-अहले-महफ़िल,
    चरागे सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ।

    मेरी हवाओं में रहेगी, ख़यालों की बिजली,
    यह मुश्त-ए-ख़ाक है फ़ानी, रहे, रहे न रहे।

    उपरोक्त लाइनों को पढ़कर आप अंदाज़ा लगा सकते है कि भगत सिंह (bhagat singh) देश की आज़ादी के लिए कितने लालायित थे और उनकी ये पंक्तियाँ उनके शौर्य की कहानी खुद-ब-खुद बयाँ कर रही है|

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