वैदिक काल या वैदिक सभ्यता का इतिहास | Vaidik Kaal Ka Itihas

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वैदिक काल या वैदिक सभ्यता का इतिहास

Vaidik Kaal : सिंधु घाटी सभ्यता की समाप्ति के बाद प्राचीन भारत में एक नई सभ्यता का प्रादुर्भाव हुआ जिसे वैदिक सभ्यता के नाम से जाना जाता है, इस सभ्यता की जानकारी हमें वेदों से ज्ञात होती है इसी कारण इसे वैदिक सभ्यता कहा जाता है और साथ ही इस काल को वैदिक काल कहा जाता है। आर्यों को इस सभ्यता का जनक कहा जाता है। तो आइये जानते है वैदिक काल या वैदिक सभ्यता के बारे में विभिन्न तथ्य…..

Vaidik Kaal Ka Itihas :

  1. वैदिक काल को दो भागों ऋग्वैदिक काल- 1500-1000 ई. पू. और उत्तर वैदिक काल- 1000-600 ई. पू. में विभाजित किया गया है |
  2. इतिहासकार मैक्समूलर ने आर्यों का निवास स्थान मध्य एशिया को माना है  आर्य सर्वप्रथम पंजाब और अफगानिस्तान में आकर बसे थे |
  3. आर्यों द्वारा ग्रामीण सभ्यता विकसित  की गई थी |
  4. इन आर्यों की भाषा संस्कृत थी |
  5. आर्यों की प्रशासनिक इकाई कुल , ग्राम ,विश , जन , राष्ट्र  में बंटी थी |
  6. राजतंत्रात्मक प्रणाली वैदिक काल में  प्रचलित थी |
  7. ग्रामीणी  ग्राम के मुखिया को कहा जाता था |
  8. विशपति विश के प्रधान को कहा जाता था |
  9. राजन  जन के शासक को कहा जाता था |
  10. पुरोहित और सेनानी  राज्य के अधिकारियों में प्रमुख थे |
  11. वहां का राजा शासन का प्रमुख होता था. राजा वंशानुगत तो होता था साथ ही जनता उसे भी हटा सकती थी |
  12. राजा युद्ध का नेतृत्व करता था परन्तु उसे कर वसूलने का कोई अधिकार नहीं था |
  13. राजा का प्रशासन में सहयोग पुरोहित और सेनानी करते थे जिनकी संख्या 12 थी जिन्हें रत्निन कहा जाता था|
  14. वाज्रपति चारागाह के प्रधान को कहा जाता था |
  15. ग्रामिणी लड़ाकू दलों के प्रधान को कहा जाता था |
  16. राजा के 12 रत्निन सहयोगी इस प्रकार थे- पुरोहित- राजा का प्रमुख परामर्शदाता, सेनानी- सेना का प्रमुख, ग्रामीण- ग्राम का सैनिक पदाधिकारी, महिषी- राजा की पत्नी, सूत- राजा का सारथी, क्षत्रि- प्रतिहार, संग्रहित- कोषाध्यक्ष, भागदुध- कर एकत्र करने वाला अधिकारी, अक्षवाप- लेखाधिकारी, गोविकृत- वन का अधिकारी, पालागल- राजा का मित्र |
  17. जनता की गतिविधियों को देखने वाले गुप्तचर पुरूप, दुर्गपति और स्पर्श के नाम से जाने जाते थे |
  18. अपराधियों को पकड़ने का कार्य उग्र करता था |
  19. राजा को सलाह देने वाली संस्था सभा और समिति थी |
  20. सभा में श्रेष्ठ और संभ्रात लोग होते थे , जबकि सामान्य जनता का प्रतिनिधित्व समिति करती थी |
  21. समिति का महत्वपूर्ण कार्य राजा का चुनाव करना होता था वही समिति का प्रधान ईशान या पति कहलाता था |
  22. होत्री- ऋग्वेद का पाठ करने वाला, उदगात्री- सामवेद की रिचाओं का गान करने वाला, अध्वर्यु- यजुर्वेद का पाठ करने वाला और रिवींध- संपूर्ण यज्ञों की देख-रेख करने वाला इस प्रकार अलग-अलग क्षेत्रों के अलग-अलग विशेषज्ञ होते थे |
  23. ऋग्वैदिक कल में समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र में विभाजित था. यह विभाजन व्यवसाय के  आधार किया गया था |
  24. जो धनि और व्यापार करते थे उन्हें पणियों कहा जाता था |
  25. गाय संपत्ति की इकाई थी साथ ही विनिमय का माध्यम भी थी |
  26. सारथी और बढ़ई समुदाय को विशेष सम्मान प्राप्त होता था |
  27. आर्यों का समाज पिता प्रधान था. पिता परिवार का मुखिया होता था जिसे कुलप कहा जाता था |
  28. इस काल में बाल विवाह और पर्दाप्रथा का प्रचलन  नहीं था |
  29. इस काल में विधवा विवाह, महिलाओं का उपनयन संस्कार, नियोग गन्धर्व और अंतर्जातीय विवाह प्रचलित था |
  30. अमाजू जीवन भर अविवाहित रहने वाली महिला को कहा जाता था |
  31. सोमरस आर्यों का मुख्य पेय था |
  32. वास , अधिवास , उष्षणीय इन तीन तरह के कपड़ों का इस्तेमाल पहनने के लिए किया जाता था , वही अंदर पहनने वाले कपड़ों को निवि कहा जाता था |
  33. मनोरंजन के साधन के रूप में संगीत, रथदौड़, घुड़दौड़ का आयोजन किया जाता था |
  34. कृषि और पशुपालन  इनका मुख्य व्यवसाय था |
  35. गो हत्या वर्जित थी |
  36. गो हत्या या उसे घायल करने वाले के शख्स को मृत्युदंड या देश निकाले की सजा का प्रावधान था |
  37. आर्यों का घोड़ा प्रिय पशु और इंद्र प्रिय देवता थे |
  38. लोहा आर्यों द्वारा खोजा गया था |
  39. व्यापार के लिए दूर-दूर तक जाने वाले व्यक्ति को पणि कहा जाता था |
  40. वस्तु-विनिमय प्रणाली का प्रचलन था |
  41. सूदखोर ऋण देकर ब्याज लेने वाले व्यक्ति को कहा जाता था |
  42. सरस्वती नदी सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र नदी मानी जाती थी |
  43. उत्तरवैदिक काल में वर्ण व्यवसाय की स्थान पर जन्म के आधार पर निर्धारित होते थे |
  44. उत्तरवैदिक काल में मु्द्रा की इकाइयां निष्क और शतमान  थीं |
  45. सांख्य दर्शन भारत के सभी दर्शनों में सबसे पुराना दर्शन था |
  46. उत्तरवैदिक काल में सीरा हल को और सीता हल रेखा को कहा जाता था |
  47. सत्यमेव जयते, मुण्डकोपनिषद् से लिया गया है |
  48. गायत्री मंत्र  ऋग्वेद से लिया गया है |
  49. पहली बार पक्की ईंटों का इस्तेमाल उत्तर वैदिक काल में कौशांबी नगर में  हुआ था |
  50. महाभारत और रामायण महाकाव्य दो हैं |
  51. महाभारत का पुराना नाम जयसंहिता है यह विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है |
  52. गोत्र नामक संस्था का जन्म उत्तर वैदिक काल में हुआ.

ऋग्‍वैदिक काल के प्रमुख देवता

क्रमांक देवता संबंध
01 इंद्र  वर्षा के देवता
02 अग्नि देवता और मनुष्‍य के बीच मध्‍यस्‍थ
03 वरुण पृथ्‍वी और सूर्य के निर्माता, समुद्र का देवता, विश्‍व के नियामक एवं शासक, सत्‍य का प्रतीक, ऋ‍तु परिवर्तन एवं दिन-रात के कर्ता
04 द्यौ आकाश के देवता
05 सोम वनस्‍पति के देवता
06 उषा प्रगति एवं उत्‍थान देवता
07 आश्विन विपत्तियों को हरनेवाले देवता
08 पूषन पशुओं के देवता
09 विष्‍णु विश्‍व के संरक्षक और पालनकर्ता
10 मरुत आंधी-तूफान के देवता

प्रमुख दर्शन एवं उसके प्रवर्तक

क्रमांक दर्शन प्रवर्तक
01 चार्वाक  चार्वाक
02 योग पतंजलि
03 सांख्‍य कपिल
04 न्‍याय गौतम
05 वैशेषिक कणाक या उलूम
06 उत्तरमीमांसा बादरायण
07 पूर्वमीमांसा जैमिनी

ऋग्‍वैदिक काल कि प्रमुख नदियां

क्रमांक प्राचीन नाम आधुनिक नाम
01 सुवस्‍तु  स्‍वात्
02 वितस्‍ता झेलम
03 शतुद्रि सतलज
04 दृसद्धती घग्‍घर
05 क्रुभ कुर्रम
06 सदानीरा गंडक
07 आस्किनी चिनाब
08 कुभा काबुल
09 गोमल गोमती
10 परुषणी रावी
11 विपाशा व्‍यास
12 उत्तरमीमांसा बादरायण
13 पूर्वमीमांसा जैमिनी

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