पाषाण काल का इतिहास
Pashan Kaal : मनुष्य के जन्म के बाद से हुए विकास को अलग अलग कालो में बांटा गया है और इसे पाषाण काल के नाम से जाना जाता है पाषाण काल के रूप में उस काल को परिभाषित किया गया है जब प्रागैतिहासिक मनुष्य अपने जीवन यापन के लिए पत्थरों का उपयोग करते थे |
Pashan Kaal Ka Itihas :
इस काल को तीन भाग बांटा गया है जो कि इस प्रकार है :
- पुरापाषाण काल
- मध्य पाषाण काल
- नवपाषाण काल
पुरापाषाण काल (10000 ई.पू. तक)
- ऐसा माना जाता है कि इस काल में मानव सबसे अधिक दिनों तक रहा है |
- इस काल में मानव अपना जीवन यापन पत्थरों का प्रयोग कर शिकार करके करता था |
- इस काल में मानव गुफाओं में रहता था |
- पुरापाषाण काल में मानव ने आग जलाना सीखा व् उसका उपयोग विभिन्न कार्यों में करना सिखा |
- इस काल की राख के अवशेष दक्षिण भारत में कुरनूल की गुफाओं में मिले|
- इस काल के स्थलों की खोज पुरातत्त्वविदों ने पुणे-नासिक क्षेत्र, कर्नाटक के हुँस्गी-क्षेत्र, आंध्र प्रदेश के कुरनूल-क्षेत्र में की , और यहाँ कि कई नदियो जैसे – ताप्ती, गोदावरी, कृष्णा भीमा, वर्धा आदि में चूनापत्थर से बने अनेक पुरापाषाण औजार व अवशेष मिले|
- इन नदियों के किनारों पर गैंडा और जंगली बैल के अनेक कंकाल मिले हैं. जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इस काल में इन क्षेत्रों में आज की तुलना में अधिक वर्षा होती होगी |
- इस काल का अंत तक जलवायु में परिवर्तन होने लगा और धीरे-धीरे तापमान में वृद्धि होने लगी|
- इस काल में मानव चित्रकारी करता था जिसका प्रमाण हमे अनेक गुफाओं मिल जाता है|
पुरापाषाण काल के महत्त्वपूर्ण स्थल हैं –
पहलगाम कश्मीर , वेनलघाटी इलाहाबाद उत्तर प्रदेश में, भीमबेटका और आदमगढ़ होशंगाबाद मध्य प्रदेश में , नेवासा अहमदनगर महाराष्ट्र में , हुंसगी गुलबर्गा कर्नाटक में ,अट्टिरामपक्कम तमिलनाडु में , पुष्कर, ऊपरी सिंध की रोहिरी पहाड़ियाँ, नर्मदा के किनारे स्थित समानापुर में
मध्यपाषाण काल (10000- 4000 ई.पू.)
- यह काल पुरापाषाण और नवपाषाण काल के बीच का काल है |
- इस काल की मुख्य विशेषता लघु पाषाण उपकरण है |
- सर्वप्रथम कार्लाइल द्वारा 1867 में विंध्य क्षेत्र में लघु पाषाण उपकरण की खोज की गई थी |
- “माइक्रोलिथक काल” के नाम से इस काल को भी जाना जाता है |
- इस काल के मानव का मुख्य पेशा शिकार करना, मछली पकड़ना और खाद्य-संग्रह करना था |
- इस काल में मानव द्वारा पशुपालन की शुरूआत की गई थी जिसके शुरूआती निशान मध्य प्रदेश और राजस्थान से मिले हैं |
मध्य पाषाण काल के महत्त्वपूर्ण स्थल –
बागोर राजस्थान , लंघनाज गुजरात , सराय नाहरराय, चोपनी माण्डो, महगड़ा व दमदमा उत्तर प्रदेश , भीमबेटका, आदमगढ़ मध्य प्रदेश
नवपाषाण काल (4000 ई.पू. से 1800 ई.पू. )
- इस काल में मानव को यह पता लग गया था कि बीज से वनस्पति बनती है और वह बीज बोने लगा था |
- इस काल में मानव ने सिंचाई करना भी सीख लिया |
- नवपाषाण काल में मानव अनाज के पकने पर उसकी कटाई कर उसका भंडारण करना सीख गया |
- इस काल में मानव में कृषक और पशुपालक दोनों था |
- इस काल में मानव कई प्रकार की फसले बोता था जिसके प्रमाण अनेक स्थानों जैसे उत्तर -पश्चिम में मेहरगढ़ (पाकिस्तान में), गुफकराल और बुर्जहोम (कश्मीर में), कोल्डिहवा और महागढ़ा (उत्तर प्रदेश में), चिरांद (बिहार में), हल्लूर और पैय्य्मपल्ली (आंध्र प्रदेश में) में गेहूँ, जौ, चावल, ज्वार-बाजरा, दलहन, काला चना और हरा चना जैसी फसलें उगाने के प्रमाण मिले हैं |
- नवपाषाण काल में मानव ने एक स्थान पर स्थाई रूप से रहना शुरू कर दिया था , कहीं-कहीं झोपड़ियों और घरों के अवशेष मिले हैं |
- बुर्जहोम नामक स्थान पर गड्ढे को घर बनाकर रहने के प्रमाण मिले हैं. ऐसे घरों को गर्तवास का नाम दिया गया |
- घर चौकोर और आयतकार होते थे |
- नवपाषाण काल में मानव एक स्थान पर छोटी-छोटी बस्तियाँ बनाकर रहनेलगा था |
- जनजाति का सरदार ज्येष्ठ और बलशाली पुरुष को बनाया जाता था , जिससे वह जनजाति की रक्षा अच्छे से कर सके |
- नवपाषाण काल में जनजातियों की अपनी स्वयम की संस्कृति और परम्पराएँ होती थीं |
- इस काल में मानव जल, सूर्य, आकाश, पृथ्वी, गाय और सर्प की पूजा विशेष रूप से करते थे |
- नवपाषाण काल में मानव मिट्टी के बरतनों पर रंग लगाकर और चित्र बनाकर उन्हें आकर्षक बनाने का प्रयास करता था |