जलवायु ( सामान्य परिचय ) :
madhya pradesh ki jalvayu : मौसम की दिशाओ का सामान्यीकृत रूप जलवायु है | किसी भी क्षेत्र में लंबे समय तक पाई जाने वाली ताप , वायु , वर्षा , आद्रता की मात्रा , अवस्था तथा गति का औसत रूप में पाया जाना जलवायु कहलाती है | मध्य प्रदेश में मानसूनी जलवायु है |
madhya pradesh ki jalvayu जलवायु के आधार पर म.प्र . के चार भाग
- उत्तर का मैदान |
- मालवा का पठार |
- विन्ध्य का पहाड़ी प्रदेश |
- नर्मदा की घाटी |
सूर्य की स्थिति
- सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होने से ताप और दाब में परिवर्तन होने से जलवायु में परिवर्तन आता है |
- 21 जून को सूर्य कर्क रेखा पर लम्बवत चमकता है |
- सूर्य का उत्तरायण होना – 21 मार्च और 23 सितम्बर को दिन रात बराबर होते है |
- 23 सितम्बर से सूर्य दक्षिणायन होता है |
- 22 दिसम्बर को सूर्य मकर रेखा पार होता है |
- म.प्र. में ऋतू सम्बन्धी आंकड़े एकत्रित करने वाली वेधशाला इंदौर में स्थित है|
म.प्र. में वर्षा
- अधिकांश वर्षा दक्षिणी – पश्चिमी मानसून से होती है |
- रीवा – पन्ना के पठार में दक्षिणी – पूर्वी मानसून से भी वर्षा होती है |
- म.प्र. में मध्य जून से सितम्बर तक वर्षा होती है |
- प्रदेश में सबसे अधिक वर्षा पंचमढ़ी में 199 से.मि. होती है |
- म.प्र. में सबसे कम वर्षा भिंड में 55 से.मी. होती है |
- प्रदेश में औसत वर्षा 112 से.मी. होती है |
- म.प्र. के पूर्वी क्षेत्र में वर्षा का औसत 140 से.मी. के लगभग है, जबकि प्रदेश के पश्चिम क्षेत्र में वर्ष का औसत 75 सेमी है |
अन्य तथ्य
- कर्क रेखा म.प्र. के मध्य से गुजरती है |
- म.प्र. का औसतन तापमान 21C आँका गया |
- प्रदेश में सर्वाधिक तापमान गंजबासोदा में 48.7 C मापा गया |
- म.प्र. में सबसे कम तापमान शिवपुरी में मापा गया |
- प्रदेश के विन्ध्य क्षेत्र में अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी दोनों मानसूनो से वर्षा होती है |
- शीत ऋतू में अधिकतम सुखा रहता है |
- म.प्र. की जलवायु को उष्णकटिबंधीय स्वरूप प्रदान करने के लिए प्रदेश के मध्य से गुजरने वाली ‘कर्क रेखा’ उत्तरदायी है, जबकि दक्षिण पश्चिम मानसून से प्राप्त होने वाली वर्षा इसे मानसूनी जलवायु का स्वरूप प्रदान करता है |