Alankar ki paribhasha | अलंकार की परिभाषा व उसके प्रकार

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Alankar ki paribhasha | अलंकार की परिभाषा व उसके प्रकार:

अलंकार की परिभाषा (Alankar ki paribhasha) : “काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्वों को अलंकार कहा जाता हैं| ”

उदाहरण :
कनक-कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय!
वा खाये बौराए नर , वा पाये बौराये।
अंलकार तीन प्रकार के होते हैं:

  1. शब्दालंकार
  2. अर्थालंकार
  3. उभयालंकार

Alankar ki paribhasha | अलंकार की परिभाषा व उसके प्रकार:

शब्दालंकार

जिस शब्दों को प्रयोग करने से चमत्कार हो जाता है और उन शब्दों की जगह पर समानार्थी शब्द को रखने से वो चमत्कार समाप्त हो जाये वहाँ शब्दालंकार होता है।

शब्दालंकार के प्रकार

शब्दालंकार के 6 प्रकार निम्लिखित हैं।

  1. यमक अलंकार
  2. अनुप्रास अलंकार
  3. श्लेष अलंकार
  4. वक्रोक्ति अलंकार
  5. पुनरुक्ति अलंकार
  6. विप्सा अलंकार

यमक अलंकार

जहां एक ही शब्द की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार होती हैं लेकिन हर बार उसका अर्थ भिन्न होता हैं यमक अंलकार कहलाता हैं।

उदाहरण :
कनक-कनक ते सौगुनी, मादकता अधिकाय!
वा खाए वैराय जग, या पाए वैराय!!

अनुप्रास अलंकार

जहां पर एक या एक से अधिक वर्णों (व्यंजन) की आवृत्ति एक से अधिक बार होती हैं वहां पर अनुप्रास अलंकार होता हैं।

उदाहरण :
बंदऊ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुवाम सरल अनुरणा

श्लेष अलंकार

श्लेष का अर्थ है “चिपकना”| जहाँ एक शब्द एक ही बार प्रयुक्त होने पर दो अर्थ दे पर श्लेष अलंकार होता है।

उदाहरण :
रहिमन पानी रखिए, बिन पानी सब सुन!
पानी गए न ऊबरे, मोती मानुस चुन!!

वक्रोक्ति अलंकार

इस अलंकार में ध्वनि के विकार के आधार पर समान शब्दों का अर्थ अलग-अलग होता हैं किंतु यहां पर शब्दों की आवृत्ति नहीं होती।

उदाहरण :
रुको, मत जाने दो।
रुको मत, जाने दो।।

पुनरुक्ति अलंकार

जब कोई शब्द दो बार दोहराया जाता है वह पुनरुक्ति अलंकार कहलाता है।

विप्सा अलंकार

जब हर्ष, शोक, आदर और विष्मयबोधक आदि भावो को प्रभावशाली रूप से व्यक्त करने के लिए शब्दि की पुनरावृत्ति होती है तो वह विप्सा अलंकार होता है।

उदाहरण :
मोहि-मोहि मोहन को मन भयो राधामय।
राधा मन मोहि-मोहि मोहन मयी-मयी।।

अर्थालंकार की परिभाषा

जिस काव्य रचना में शब्दों के शोभा बढ़ाने वाले शब्दों को ही अर्थालंकार कहते हैं।

उदाहरण : उत्प्रेक्षा, अतिश्योक्ति, उपमा, रूपक, अन्योक्ति, व्याजनिदा, दृष्टांत, व्यति, रेखा, व्याजस्तुति, भाँतिमान, संदेह।

अर्थालंकार के  प्रकार

अर्थालंकार के 23 प्रकार के होते हैं :

  1. उपमा अलंकार
  2. रूपक अलंकार
  3. उत्प्रेक्षा अलंकार
  4. अतिशयोक्ति अलंकार
  5. अन्योक्ति अलंकार
  6. द्रष्टान्त अलंकार
  7. विभावना अलंकार
  8. उपमेयोपमा अलंकार
  9. दीपक अलंकार
  10. व्यतिरेक अलंकार
  11. विशेषोक्ति अलंकार
  12. अर्थान्तरन्यास अलंकार
  13. विरोधाभाष अलंकार

उपमा अलंकार

काव्य में जहां पर दो प्रसिद्ध वस्तुओं या व्यक्तियों की वास्तविक तुलना उन वस्तुओं या व्यक्तियों के गुण, दोष के आधार पर की जाती हैं वहाँ उपमा अलंकार होता हैं। इस अलंकार को अलंकारों का सिरमोर भी कहा जाता हैं।

उदहारण :

पीपर पात सरिस मन डोला|

राधा बदन चन्द्र सो सुन्दर||

उपमा अलंकार के 4 अंग होते है

  1. उपमेय
  2. उपमान
  3. समान गुण
  4. समान वाचक शब्द

उपमेय : दो वस्तुओं में से जिस वस्तु की तुलना की जाती हैं उसे उपमेय कहा जाता हैं।

उपमान अलंकार : दो वस्तुओं में से जिस वस्तु से तुलना की जाती हैं उसे उपमान कहा जाता हैं।

समान गुण अंलकार : दोनों वस्तुओं में तुलना उन वस्तु के जिस गुण के कारण होती हैं उस गुण को ही गुण धर्म कहाँ जाता हैं।

उपमा अलंकार के दो भेद होते हैं।

  1. पुणोपमा अलंकार
  2. लुप्तोपमा अलंकार

रूपक अलंकार

जिस अलंकार में एक वस्तु में दूसरी वस्तु व्यक्ति की कल्पना कर ली जाती हैं वहाँ पर रूपक अलंकार होता हैं इसमें मुख्य रूप से रूपी शब्द अर्थ में समाहित होता हैं जो कि इसकी पहचान हैं।

उदाहरण : पायो जी मैंने राम रतन धन पायो।

उत्प्रेक्षा अलंकार

जहां उपमेय को ही उपमान मान लिया जाता है यानी अप्रस्तुत को प्रस्तुत मानकर वर्णन किया जाता है वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता हैं| यहाँ भिन्नता में अभिन्नता दिखाई जाती है इस प्रकार की छन्द रचना में पहचान कर रूप में जनु, जानो, जनाहू, मनु, मनहु, मानो शब्दों का उपयोग वाचक शब्दों के रूप में किया जाता हैं।

उदाहरण : मुख मानो चन्द्र हैं।

अतिश्योक्ति अलंकार

जिस काव्य में किसी गुण, स्थिति या घटना का उल्लेख बढ़ा चढ़ा कर किया जाता हैं वहां पर अतिशयोक्ति अलंकार होता हैं।

उदाहरण :
हनुमान की पूंछ में, लगन न पाई आग,
लंका सगरी जल गई, गए निसाचर भाग।

अन्योक्ति अलंकार

जहां पर उल्लेखित तथ्य या घटना को छिपा कर दूसरे आधार के माध्यम से अपनी बात को कहना अर्थात अपनी बात को सीधे तरीके से ना कह कर अप्रत्यक्ष तरीके से कहा जाता हैं।

उदाहरण :
माली आवत देखकर, कलियन करै पुकार।
फुले फुले चुन लिए, कलहि हमारी बार।।

द्रष्टान्त अलंकार

जहाँ दो सामान्य या दोनों विशेष वाक्य में बिम्ब प्रतिबिम्ब का भाव होता है वहां द्रष्टान्त अलंकार होता हैं।

उदाहरण :
करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सूजान।
रसरि आवत जात ही, सिलपर परत निशान।।

विभावना अलंकार

जहाँ कारण के ना होते हुए भी कार्य का होना पाया जाता हैं वहां विभावना अलंकार होता हैं।

उदाहरण :
बिनु पगु चलै, सुनै बिनु काना,
कर बिनु कर्म, करै विधि नाना,
आनन रहित, सकल रसु भोगी,
बिनु वाणी वक्ता बड़ जोगी।

उपमेयोपमा अलंकार

जिस अलंकार में उपमेय और उपमान को परस्पर उपमान और उपमेय बनाने की कोशिश की जाती हैं और जिसमे उपमेय और उपमान की उजमा दी जाती है। वहाँ उपमेयोपमा अलंकार होता है|

व्यतिरेक अलंकार

व्यतिरेक शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है आधिक्य। अत: जहाँ उपमान की अपेक्षा अधिक गुण होने के कारण उपमेय का उत्कर्ष हो वहाँ व्यतिरेक अलंकार होता है।

उदाहरण :
का सरवरि तेहिं देउं मयंकू। चांद कलंकी वह निकलंकू।
मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे दूँ।।

विशेषोक्ति अलंकार

काव्य में जहाँ कार्य सिद्धि के सारे कारण होते हुए भी कार्य सिद्ध न हो वहाँ पर विशेषोक्ति अलंकार होता है।

उदाहरण :
नेह न नैनन को कछु, उपजी बड़ी बलाय।
नीर भरे नित-प्रति रहें, तऊ न प्यास बुझाई।।

अर्थान्तरन्यास अलंकार

जब किसी विशेष कथन से सामान्य कथन का या सामान्य कथन से विशेष कथन का समर्थन किया जाये वहाँ अर्थान्तरन्यास अलंकार होता है।

उदाहरण :
बड़े न हूजे गुनन बिनु, बिरद बडाई पाए।
कहत धतूरे सों कनक, गहनो गढ़ो न जाए।।

विरोधाभाष अलंकार

जहाँ किसी वस्तु का वर्णन करने पर उस वस्तु का विरोध न होते हुए भी विरोध का आभाष हो वह विरोधाभास अलंकार कहलाता है।

उदाहरण :
आग हूँ जिससे ढुलकते बिंदु हिमजल के।
शून्य हूँ जिसमें बिछे हैं पांवड़े पलकें।।

उभयालंकार की परिभाषा

वे अलंकार जो की शब्द और अर्थालंकार के योग से मिलकर बनते है किन्तु भिन्न होते हैं उभयालंकार कहलाते हैं।

उदाहरण : कजरारी अंखियन में कजरारी न लखाय।

 

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